Current Events : 9 to 11 Jan 2019
Topic : Indian Forest and Tribal Service
संदर्भ
भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service) का नामकरण भारतीय एवं जनजाती सेवा (Indian Forest and Tribal Service) करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों के साथ परामर्श की प्रक्रिया आरम्भ कर दी है. नामकरण का यह प्रस्ताव NCST द्वारा की गई एक अनुशंसा पर आधारित है.
इस विषय में तैयार की गई परामर्श टिपण्णी में कहा गया है कि इसका उद्देश्य भारतीय वन सेवा के अधिकारीयों के लिए जनजातियों और वनवासियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाना है.
भारतीय वन सेवा क्या है?
- भारतीय वन सेवा (IFS) 1864 में ब्रिटिश काल में इम्पीरियल फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के रूप में आरम्भ हुई थी और 1866 में एक जर्मन वन अधिकारी डॉ. डाइट्रिच ब्रैंडिस को वन महानिरीक्षक नियुक्त किया गया था. कालांतर में एक अखिल भारतीय सेवा की आवश्यकता अनुभव की गई तथा 1867 में इम्पीरियल फॉरेस्ट सर्विस का गठन हुआ.
- 1935 के गवर्मेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत वानिकी विषय को “प्रांतीय सूची” में स्थानांतरित कर दिया गया था और इसके पश्चात् इम्पीरियल फॉरेस्ट सर्विस में भर्ती का काम बंद कर दिया गया था.
- 1951 के अखिल भारतीय सेवा अधिनियम के तहत भारत सरकार ने भारतीय वन सेवा का 1966 में गठन किया.
Topic : Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana (PMFBY)
संदर्भ
संसद की प्राक्कलन समिति (Estimates Committee) ने अपने नवीनतम प्रतिवेदन में प्रधानमन्त्री फसल बीमा योजना (PMFBY) को फिर से तैयार करने की अनुशंसा की है तथा यह सलाह दी है कि इस योजना में अधिक से अधिक किसान रूचि दिखाएँ. इसके लिए इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता लाई जाए तथा अधिक वित्तीय आवंटन दिया जाए.
इस समिति ने यह टिपण्णी की है कि इस योजना में कुछ मौलिक त्रुटियाँ हैं जिसके कारण यह इतनी कारगर नहीं है.
पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भारत सरकार की एक मूर्धन्य योजना है जिसका 2016 में बड़े धूम-धाम से अनावरण किया गया था. परन्तु आगे चलकर इसका प्रदर्शन ठीक नहीं रहा और इसके अन्दर आने वाले क्षेत्रों और पंजीकृत किसानों की संख्या में गिरावट आई. इसलिए, इस योजना में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव की गई.
योजना के समक्ष चुनौतियाँ
- पिछले रबी मौसम से सम्बंधित आँकड़ें उपलब्ध नहीं हैं.
- कुछ ही राज्य सरकारें समय पर प्रीमियम में अपना हिस्सा दे रही हैं जिससे केन्द्रीय सरकार के द्वारा शेष हिस्से को देने में कठिनाई हो रही है.
- फसलों की क्षति के मूल्यांकन के बारे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग नहीं हो रहा है.
- क्षति के आकलन के सम्बन्ध में लगी हुई एजेंसियाँ अप्रशिक्षित हैं और उनमें भ्रष्टाचार देखा गया है.
- दावा भुगतान में देरी.
- बीमा कंपनियों द्वारा वसूल की जा रही प्रीमियम की दरें ऊँची हैं.
- राज्यों की ओर से प्रीमियम के भुगतान में देरी अथवा फसल-कटाई का आँकड़ा आने में कोताही के कारण कम्पनियाँ किसानों को समय पर भुगतान नहीं कर रही हैं.
- बीमा कम्पनियाँ योजना के उचित कार्यान्वयन के लिए आवश्यक ढाँचा तैयार करने में विफल रही हैं.
- भीषण मौसमी घटनाओं के समय इस योजना से मिलने वाला लाभ किसानों के लिए अपर्याप्त होता है.
प्रधानमन्त्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
अप्रैल 2016 में भारत सरकार ने पुरानी बीमा योजनाओं, जैसे – राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना, मौसम आधारित फसल बीमा योजना और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को वापस लेते हुए एक नई योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का आरम्भ किया था.
- इस बीमा योजना के अंतर्गत किसानों को खरीफ फसलों के लिए 2% और रबी फसलों के लिए 1.5% प्रीमियम देना होता है.
- वार्षिक नकदी और बाग़वानी फसलों के लिए प्रीमियम की दर 5% होती है.
- जिन किसानों ने बैंकों से ऋण लिया है उनके लिए यह योजना अनिवार्य है और जिन्होंने नहीं लिया है, उनके लिए यह वैकल्पिक है.
उद्देश्य
- अप्रत्याशित कारणों से फसल की क्षति के शिकार किसानों को आर्थिक सहारा देना.
- किसानों की आय को बनाए रखना जिससे कि वे खेती करना नहीं छोड़ें.
- किसानों को अभिनव एवं आधुनिक कृषि प्रचलन अपनाने के लिए उत्साहित करना.
- कृषि प्रक्षेत्र में ऋण के प्रवाह को सुनिश्चित करना जिससे खाद्य सुरक्षा, फसलों की विविधता, उत्पादन में वृद्धि और कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिले और उत्पादन के जोखिमों से किसान सुरक्षित हो सके.
Topic : DNA technology Bill
संदर्भ
लोकसभा ने DNA तकनीक (उपयोग एवं अनुप्रयोग) नियमन विधेयक, 2018 को पारित कर दिया है. यह विधेयक कुछ विशेष व्यक्तियों, जैसे – अपराधियों, संदिग्ध अपराधियों और विचाराधीन बंदियों की पहचान के लिए DNA तकनीक के प्रयोग का नियमन करता है.
विधेयक की महत्ता
आज पूरे विश्व में अपराधों को सुलझाने के लिए DNA पर आधारित तकनीक की उपयोगिता सर्वमान्य है. इसलिए नए विधेयक का उद्देश्य DNA पर आधारित तकनीकों का प्रयोग कर देश की न्यायव्यवस्था को सुदृढ़ करना.
विधेयक के मुख्य तथ्य
- इस विधेयक का उद्देश्य है कि न्यायालय की प्रक्रिया में DNA report को प्रमाण के रूप में मान्यता मिले.
- विधेयक में यह प्रस्ताव है कि अपराध-पीड़ितों, संदिग्ध अपराधियों, विचाराधीन बंदियों, खोये हुए व्यक्तियों, लावारिस लाशों की पहचान आदि के लिए राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय DNA डेटा बैंकस्थापित किये जायेंगे.
- विधेयक में यह प्रस्ताव है कि यदि कोई DNA data ऐसे व्यक्ति को दे दे जिसके लिए वह अधिकारी नहीं हो तो उसे तीन वर्ष तक के कारावास की सजा एवं 1 लाख रु. के दंडका जुर्माना लगेगा. यही सजा और जुर्माना उस व्यक्ति को भी लगेगा जो अवैध रूप से DNA data प्राप्त करेगा.
- प्रस्ताव है कि DNA प्रोफाइल, DNA नमूने एवं DNA रिकॉर्ड समेत सभी DNA data मात्र व्यक्ति की पहचान के लिए प्रयुक्त किये जायेंगे नाकि किसी अन्य उद्देश्य के लिए.
- विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि DNA प्रयोगशालाओं को मान्यता देने और उन्हें विनियमित करने के लिए आवश्यक व्यवस्थाएँ की जायेंगी और इसके लिए एक DNA नियामक बोर्ड की स्थापना होगी.
लाभ
- इस कानून के बनने के बाद DNA के नमूने लेना और DNA Bank को स्थापित करना आसान हो जाएगा.
- DNA नमूनों का गलत इस्तेमाल रोका जा सकेगा.
- गलत इस्तेमाल करने वालों को सजा दिलाई जा सकेगी.
- इसके साथ ही यह कानून लावारिश लाशों की पहचान करने में मददगार साबित होगा.
- यौन हमले जैसे गंभीर आपराधिक मामलों में अपराधियों की पहचान की जा सकेगी चाहे यह मामला कितना भी पुराना क्यों न हो!
- आपदा में शिकार हुए लोगों की पहचान की जा सकेगी.
- गुमशुदा लोगों की तलाश, अपराध नियंत्रण और अपराधियों की पहचान की जा सकेगी.’
DNA तकनीक का महत्त्व
- DNA विश्लेषण एक ऐसी अत्यंत उपयोगी और सटीक तकनीक है जिससे किसी व्यक्ति के DNA नमूने से उसकी पहचान हो सकती है अथवा दो व्यक्तियों के बीच जैविक रिश्ते का निर्णय हो सकता है.
- अपराध के स्थल से उठाये गये बाल के नमूने अथवा कपड़ों में लगे रक्त के धब्बों से किसी संदिग्ध व्यक्ति का मिलान किया जा सकता है और अपराधी की पहचान हो सकती है. इस काम में न्यायालय आजकल अत्यंत रूचि ले रहे हैं.
- DNA नमूने न केवल यह बतलाते हैं कि आदमी कैसा दिखता है अथवा उसकी आँखों या चमड़े का रंग क्या है अपितु यह भी सूचित करता है कि उसे किस बात की एलर्जी है और उसे कौन-कौन रोग लग सकते हैं. इसलिए, DNA विश्लेषण से प्राप्त सूचना का दुरूपयोग भी हो सकता है.
- DNA तकनीक से न केवल न्याय में गति आएगी, अपितु सजा देने की दर में बढ़ोतरी भी होगी. विदित हो कि वर्तमान में 2016 के आँकड़ों में अनुसार 30% मामलों में ही दंड दिया जाता है
Topic : National Bamboo Mission
संदर्भ
राष्ट्रीय बांस मिशन (NBM) की बनावट सुधार कर उसे अप्रैल 2018 में कार्यान्वयन के लिए अनुमोदित कर दिया गया. यह मिशन 14वें वित्त आयोग के अंत तक अर्थात् 2019-20 तक कार्यान्वित किया जाएगा. राष्ट्रीय बांस मिशन (NBM) बहु-आयामी कृषि उन्नति योजना के अन्दर आने वाले राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (National Mission on Sustainable Agriculture -NMSA) की एक उपयोजना है.
उद्देश्य
- यह मिशन बाँस क्षेत्र के पूर्ण विकास पर ध्यान देता है और इसके लिए किसानों और उद्योगों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है. इस प्रकार इस योजना का उद्देश्य किसानों को अतिरिक्त आय उपलब्ध कराना भी है.
- दो वर्षों में 1,05,000 हेक्टेयर में बाँस की खेती लगाना और इसके लिए उत्तम कोटि के पौधों को चुन-चुन कर उपलब्ध कराना.
- बाँस के विकास और उससे बनने वाले उत्पादों में विविधता को प्रोत्साहित करना एवं इसके लिए छोटे-बड़े प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करना.
- बाँस की बिक्री के लिए ऑनलाइन व्यापार की सुविधा देने के अतिरिक्त उसके लिए मंडी/बाजार/ग्रामीण हाट के तंत्र को सुदृढ़ करना.
- बाँस के बारे में अनुसंधान, सम्बंधित तकनीक उत्पादनों का विकास, आवश्यक मशीन, व्यापार से सम्बंधित सूचना और ज्ञान के वितरण लिए मंच का निर्माण आदि कार्यों से देश में, विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों में, आपसी सहयोग की वृद्धि करना.
कार्यान्वयन
इस योजना का कार्यान्वयन उन राज्यों के खेतों और गैर-जंगली सरकारी भूमि में होगा जहाँ बाँस की अच्छी पैदावार होती है, जैसे – पूर्वोत्तर क्षेत्र, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, कर्नाटक, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, तमिलनाडु और केरल.
वित्तीय सहायता
- जहाँ तक पूर्वोत्तर राज्यों का प्रश्न है वहाँ इस योजना के तहत दी जाने वाली वित्तीय सहायता का वहन केंद्र और राज्य सरकार क्रमशः 90:10 के अनुपात में करती है.
- अन्य राज्यों में केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली निधि का अनुपात 60:40 होगा.
- संघीय क्षेत्रों, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, बाँस तकनीक सहयोग समूहों (BTSGs) और राष्ट्र-स्तरीय एजेंसियों के लिए निधि का 100% केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा.
Topic : Universal Basic Income
संदर्भ
सिक्किम राज्य में शासन करने वाले दल – सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF) – ने हाल ही में 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में सार्वभौम आधारभूत आय (Universal Basic Income – UBI) योजना को सम्मिलित करने की घोषणा की है और कहा है कि वह इसे 2022 तक लागू करना चाहता था.
यदि सब कुछ योजना के अनुसार चला तो सिक्किम भारत का वह पहला राज्य हो जाएगा जिसने इस योजना को लागू किया.
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि सिक्किम ने पहले भी भूतकाल में अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किये हैं जो देश के लिए अनूठे हैं :
- कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न के मामले में सिक्किम सबसे सुरक्षित राज्य है. यहाँ कर्मचारियों में महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है जिसके चलते उनके प्रति अपराध भी कम हैं.
- सिक्किम में 2001 में साक्षरता दर 8% थी जो बढ़कर अब 82.2% हो गई है. यह वृद्धि दर देश की सर्वाधिक बड़ी वृद्धि दर है.
- सिक्किम भारत का सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य है. 2004-05 से यहाँ का प्रति-व्यक्ति GDP दो अंकों में बढ़ता रहा है.
- 2004-05 में सिक्किम में 7 लाख (30.9%) लोग निर्धन थे. 2011-12 में ऐसे लोगों की संख्या 51 हजार (8.2%) हो गई है. इस प्रकार निर्धनता अनुपात में 22% की गिरावट आई.
- सिक्किम भारत का ऐसा पहला राज्य है जो पूर्णतया जैविक हो चुका है.
सार्वभौम आधारभूत आय क्या है?
सार्वभौम आधारभूत आय (UBI) एक ऐसी योजना है जिसमें देश के सभी नागरिकों को एक निश्चित धनराशि दी जाती है चाहे उनकी आय, संसाधन अथवा आजीविका की स्थिति कैसी भी हो.
इस योजना के पीछे मुख्य अवधारणा निर्धनता की रोकथाम करना अथवा उसे घटाना तथा साथ ही नागरिकों के बीच समानता में वृद्धि करना है. सार्वभौम आधारभूत आय का मूल सिद्धांत यह है कि देश के सभी नागरिकों को अधिकार है कि उनके पास एक जीने योग्य आय हो चाहे उनकी जन्मजात स्थिति कुछ भी हो.
Topic : Gold monetization program
संदर्भ
भारतीय रिज़र्व बैंक ने केंद्र और राज्य सरकारों एवं उनके स्वामित्व के प्रतिष्ठानों को अपनी स्वर्ण मुद्राकरण योजना (Gold monetization program) के अंतर्गत सोना जमा करने की छूट दे दी है. इसके अतिरिक्त दातव्य संस्थानों को भी बैंकों में सोना जमा करने की अर्हता प्रदान कर दी है जिससे वे ब्याज कमा सकें.
स्वर्ण मुद्रीकरण योजना क्या है?
यह एक वित्तीय योजना है जिसका अनावरण 2015 में किया गया था. इस योजना का मुख्य उद्देश्य घरों में अथवा बैंक जैसे संस्थानों में बिना उपयोग के पड़े सोने का मुद्रीकरण करना है.
योजना के मुख्य तत्त्व
- कोई भी व्यक्ति अपना सोना जमा करने के लिए निर्दिष्ट बैंकों में स्वर्ण-बचत खाता खोल सकता है.
- कोई भी व्यक्ति BIS अभिप्रमाणित संग्रह अथवा शुद्धता परीक्षण केन्द्रों के माध्यम से सोना जमा कर सकता है.
- जमा किये गये सोने का भार कम से कम 30 ग्राम होना चाहिए. इसके लिए ऊपरी सीमा नहीं है.
- सोना तीन अवधियों के लिए जमा होगा. पहली अवधि अल्पकालिक (1 से 3 साल) है, दूसरी अवधि मध्यकालिक (5 से 7 साल) है और तीसरी अवधि दीर्घकालिक (12 से 15 साल) है.
- जमा किया गया सोना शोधशालाओं को भेज दिया जाता है. विदित हो कि इसके लिए शोधशालाओं और शुद्धता परीक्षण केन्द्रों के साथ बैंकों का त्रि-पक्षीय/द्वि-पक्षीय समझौता होता है.
- जमा-अवधि के पूरे हो जाने पर कोई भी व्यक्ति अपने अल्पकालिक जमा के बदले नकद या सोना वापस पा सकता है. परन्तु यदि सोना दीर्घकालिक अवधि के लिए जमा किया गया है तो उस व्यक्ति को मात्र नकद मिलेगा.
- सोना जमा करने के लिए बैंक के ग्राहक को 25% से लेकर 2.50% तक ब्याज मिलेगा.
Topic : ‘Private consumption, a $6 tn opportunity’
संदर्भ
विश्व आर्थिक मंच ने हाल ही में “तेजी से बढ़ रहे उपभोक्ता बाजार (इंडिया) का भविष्य” शीर्षक वाला एक प्रतिवेदन निर्गत किया है.
प्रतिवेदन के मुख्य तथ्य
- इस प्रतिवेदन के अनुसार भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का एक बहुत बड़ा अंश घरेलू निजी खपत से आता है और यह संभावना है कि भारत में 6 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हो सकती है. यह वृद्धि होने से भारत 2030 तक विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था हो जायेगी.
- परन्तु 6 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के मार्ग में कुछ चुनौतियाँ हैं. इसके लिए भारत को कुछ सामाजिक समस्याओं का समाधान करना होगा, जैसे – भावी कर्मचारियों में कौशल का विकास करना और उन्हें आजीविका देना, ग्रामीण भारत का सामाजिक-आर्थिक समावेशन करना और अपने नागरिकों के लिए एक स्वस्थ्य एवं टिकाऊ भविष्य गढ़ना.
- यदि इन समस्याओं का समाधान हो जाता है तो भारत का उपभोक्ता बाजार अमेरिका और चीन के बाद विश्व का तीसरा बड़ा बाजार हो जाएगा.
प्रधान कारकतत्त्व
- 2030 तक भारत में खपत बढ़ाने के लिए एक ओर जहाँ आय में वृद्धि आवश्यक होगी तो दूसरी ओर वृद्धि एवं लाभ वितरण का व्यापक होना आवश्यक होगा.
- मध्यम-वर्ग की वृद्धि के फलस्वरूप लगभग 25 मिलियन घरबार निर्धनता से बाहर आ जाएँगे तो दूसरी ओर भारत में 700 मिलियन ऐसे Gen Z उपभोक्ता होंगे जिनका जन्म 2000 के बाद हुआ है तथा साथ ही जो एक खुले हुए और अपने-आप पर भरोसा रखने वाले देश में पले-बढ़े हैं.
आगे की चुनौतियाँ
तीसरी बड़ी अर्थव्यस्था होने के लिए यह भी आवश्यक होगा कि व्यवसायी-वर्ग और नीति-निर्माता आर्थिक एवं खपत की वृद्धि के प्रति एक समावेशी दृष्टिकोण का पालन करें. इसके लिए विश्व आर्थिक मंच (WEF) के प्रतिवेदन में ऐसी तीन सामाजिक चुनौतियाँ बताई गई हैं, जिनका समाधान आवश्यक है –
कौशल के स्तर में अंतर : आने वाले दस वर्षों में भारत में 10-12 मिलियन लोग काम करने की उम्र के हो जाएँगे. ऐसी दशा में उचित कौशल से युक्त कार्यबल तैयार करना एक चुनौती होगी. 2022 तक भारतीय कर्मियों में से आधे को फिर से कौशल-युक्त बनाना होगा.
आड़े आने वाली बाधाएँ : 2030 तक 40% भारतीय शहरी निवासी हो जाएँगे. ऐसी स्थिति में ग्रामीण भारत का सामाजिक-आर्थिक समावेशन करना होगा. भौतिक सम्पर्क, डिजिटल सम्पर्क, वित्तीय समावेशन के अभाव के चलते गाँव में रहने वालों पर धन व्यय करने और उनका कल्याण करने में अड़चन आ रही है. इन अड़चनों को दूर करना आवश्यक है जिससे कि अगली दशाब्दी में भारत में सामाजिक एवं आर्थिक समावेशन सुनिश्चित किया जा सके.
स्वास्थ्य एवं जीवनयापन में सुधार : व्यवसायी वर्ग और नीति-निर्माताओं को स्वास्थ्य एवं जीवन-यापन में सुधार लाने के लिए कदम उठाने होंगे. इसके लिए सभी को सुलभ स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करानी होगी. साथ ही सतत विकास को प्रोत्साहन देना होगा एवं शहर में जन-संतुलता का समाधान करना होगा.
Topic : Gangajal Project
संदर्भ
आगरा में पर्यटन से सम्बंधित अवसंरचना के निर्माण और वृद्धि के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में आगरा शहर और उसके आस-पास क्षेत्रों के लिए 2,900 करोड़ रूपये की कई विकास परियोजनाओं का अनावरण किया.
गंगाजल परियोजना क्या है?
- इस परियोजना के द्वारा आगरा में पेय जल की माँग को पूरा करने के लिए गंगा नदी से 140 क्यूसेक पानी प्रतिदिन आगरा लाया जाएगा.
- इस योजना में 2,880 करोड़ रूपये का खर्च आएगा.
- यह परियोजना वस्तुतः 2005 की परियोजना है जो जापान की अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (International Cooperation Agency) की सहायता से चल रही है. इसको मार्च 2022 तक पूरा हो जाना चाहिए था, पर कई कारणों से ऐसा हो न सका.
- गंगा नदी से आने वाला पानी बुलंदशहर की ऊपरी गंगा नहर की पालरा हेडवर्क से आएगा.
Topic : GST Council
संदर्भ
हाल ही में सम्पन्न अपनी 32वीं बैठक में GST परिषद् ने ऐसे कई निर्णय लिए जिनका उद्देश्य छोटे और मंझोले व्यवसायियों के ऊपर से कर घटाना और अनुपालन का बोझ कम करना है
लिए गये निर्णय
- GST से मुक्ति के लिए कंपनियों के लिए निर्धारित वार्षिक टर्न-ओवर की सीमा को 20 लाख रू. से बढ़ाकर 40 लाख रू. कर दिया गया है. पूर्वोत्तर राज्यों और पहाड़ी राज्यों में यह सीमा पहले 10 लाख रू. थी जो अब 20 लाख रू. कर दी गई है.
- कम्पोजीशन योजना के लिए अर्हता की सीमा के लिए वांछित वार्षिक टर्न-ओवर को अप्रैल 1, 2019 से डेढ़ करोड़ रू. कर दिया गया है. अब तक केवल निर्माता और व्यापारी ही इस योजना के लिए योग्य थे. परन्तु अब यह योजना उन छोटे सेवा-प्रदाताओं तक बढ़ा दी गई है जिनका वार्षिक टर्न-ओवर 50 लाख रू. तक का है. इसके लिए निर्धारित कर की दर 6% है.
- केरल राज्य को राज्य के अन्दर आपूर्ति पर दो वर्ष तक 1% अधिकर लगाने की छूट दी गई है जिससे वह हाल में आई बाढ़ के सन्दर्भ में आपदा राहत कार्यों के लिए वित्त जुटा सके.
इन निर्णयों का निहितार्थ
- GST का एक बहुत बड़ा अंश औपचारिक सेक्टर और बड़ी कंपनियों से आता है. यह जो निर्णय लिए गये हैं उनसे छोटी और मंझोली कंपनियों को सहायता मिलेगी. इससे GST राजस्व पर साधारण प्रभाव पड़ेगा.
- केरल को आपदा अधिकार के रूप में 1% लगाने की छूट देने से अन्य राज्य भी अतिरिक्त अधिकार की माँग भविष्य में उठा सकते हैं.
- GST की सीमा को बढ़ाने से 10 लाख व्यापारी GST भरने से मुक्ति पा लेंगे. दूसरी ओर कम्पोजीशन योजना की सीमा बढ़ाने से उन 20 लाख छोटे व्यवसाइयों को लाभ पहुंचेगा जिनका वार्षिक टर्न ओवर 1 करोड़ रू. से 5 करोड़ रू. के बीच है.
कम्पोजीशन योजना किसके लिए है?
वर्तमान में जिन कंपनियों का वार्षिक टर्न-ओवर 1 करोड़ रू. तक का है, वे ही इस योजना में आ सकती हैं और 1% की न्यून दर पर त्रैमासिक आधार पर रिटर्न जमा कर सकती हैं.
GST परिषद् की संरचना
इसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं –
- केन्द्रीय वित्त मंत्री परिषद् के अध्यक्ष होंगे.
- केन्द्रीय राजस्व वित्त राज्य मंत्री इसके सदस्य होंगे.
- इस परिषद् में प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा नामित वित्त अथवा कर के प्रभार वाले मंत्री अथवा अन्य कोई भी मंत्री इसके सदस्य होंगे.
Topic : Henley Passport Index
संदर्भ
2019 का हेनले पासपोर्ट सूचकांक निर्गत कर दिया गया है. यह सूचकांक अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन प्राधिकरण (International Air Transport Authority – IATA) द्वारा 199 पासपोर्टों और 227 पर्यटन स्थलों के सम्बन्ध में दिए गये आँकड़ों पर आधारित होता है.
पृष्ठभूमि
हेनले पासपोर्ट सूचकांक (HPI) में विभिन्न देशों की वैश्विक रैंकिंग इस आधार पर दी जाती है कि वहाँ उनके नागरिकों को भ्रमण करने की कितनी स्वतंत्रता मिली हुई है. यह सूचकांक 2006 में आरम्भ हुआ था जब उसका नाम हेनले एंड पार्टनर्स वीजा प्रतिबंध सूचकांक हुआ करता था. कालांतर में इसका स्वरूप बदला गया और जनवरी 2018 में इसे हेनले पासपोर्ट सूचकांक का नाम दिया गया.
रैंकिंग की तकनीक
HPI में पासपोर्टों की रैंकिंग इस आधार पर की जाती है कि उनके माध्यम से कितने अन्य क्षेत्रों में बिना वीजा की यात्रा की जा सकती है. इसके लिए IATA डाटाबेस में वर्णित सभी प्रमुख गन्तव्य देशों और क्षेत्रों पर विचार किया जाता है.
विभिन्न देशों की रैंकिंग
- 2018 में भारत की रैंकिंग 81वीं थी जो इस वर्ष बढ़कर 79वीं हो गई है.
- जापान पहले की भाँति शीर्ष स्थान पर रहा क्योंकि उस देश के पासपोर्ट से 190 देशों तक वीजा-रहित यात्रा की जा सकती है.
- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल की रैंकिंग पहले से गिरकर क्रमशः 104, 102 और 94 हो गई.
- दक्षिणी कोरिया के पासपोर्ट की शक्ति बढ़कर सिंगापुर के बराबर हो गई जहाँ 189 देशों की यात्रा के लिए सुविधा दी जाती है.
- पिछले दो वर्षों में चीन का पासपोर्ट 85 से उछलकर 69वें स्थान पर आ गया.
- यूरोप के देशों ने भी इस मामले में अच्छा प्रदर्शन किया. यद्यपि इंग्लैंड की रैंकिंग में इस वर्ष भी गिरावट देखी गई.
Topic : Democracy Index 2018
संदर्भ
हर वर्ष की भाँति The Economist के द्वारा 2018 का लोकतंत्र सूचकांक (democracy index) निर्गत कर दिया गया है.
यह सूचकांक 165 देशों और दो क्षेत्रों में लोकतंत्र की स्थिति दर्शाता है. यह सूचकांक इन पाँच श्रेणियों पर आधारित होता है – चुनाव की प्रक्रिया और बहुलतावाद; नागरिक स्वतंत्रताएँ; सरकार का कारोबार; राजनैतिक भागीदारी; तथा राजनीतिक संस्कृति. इन पाँच श्रेणियों के अन्दर भी 60 संकेतक होते हैं. सभी पर विचार कर के प्रत्येक देश को इन चार वर्गों में बाँटा जाता है – पूर्ण लोकतंत्र; त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र; संकर शासनतंत्र; तथा निरंकुश राजतंत्र.
भारत का प्रदर्शन
इस बार भारत की रैंकिंग पिछले वर्ष की तुलना में एक स्थान बढ़कर 41वीं हो गई है. सूचकांक के अनुसार यह देश त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी में आता है. इस बार भारत को दिया गया अंक 7.23 है जो पिछले वर्ष भी यही था. जब से यह सूचकांक प्रकाशित होना आरम्भ हुआ तब से इस बार भारत को सबसे कम अंक मिले हैं.
अमेरिका को 25वाँ स्थान मिला है. भारत की भाँति सूचकांक में जिन देशों को “त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र” कहा गया है, वे हैं – इटली, फ़्रांस, बोत्सवाना और द. अफ्रीका.
त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र की परिभाषा
सूचकांक के अनुसार उन देशों को त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र कहा जाता है जहाँ चुनाव स्वतंत्र और न्यायपूर्ण ढंग से होते हैं. यद्यपि वहाँ मीडिया की स्वतंत्रता में कमी जैसी समस्याएँ हो सकती हैं. ऐसे लोकतंत्र में बुनियादी नागरिक स्वतंत्रताओं का आदर होता है किन्तु कुछ कमियाँ भी होती हैं, जैसे- प्रशासन की समस्या, अल्प-विकसित राजनीतिक संस्कृति और राजनीतिक भागीदारी का निम्न-स्तर.
Topic : National Clean Air Programme
संदर्भ
भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme – NCAP) नामक कार्यक्रम की घोषणा की है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य वायु की गुणवत्ता को समयबद्ध तरीके से सुधारने के लिए एक राष्ट्रीय ढाँचा तैयार करना है.
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के मुख्य तत्त्व
- 2017 से लेकर 2024 तक पूरे देश में 5 और PM10 संघनन (concentration) में 20-30% कमी के लक्ष्य को प्राप्त करना.
- इस कार्यक्रम को पूरे देश में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board – CPCB) वायु (प्रदूषण प्रतिषेध एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1986 के अनुभाग 162 (b) के अनुसार लागू करेगा.
- इस कार्यक्रम के लिए पहले 2 वर्ष में 300 करोड़ रू. का आरम्भिक बजट दिया गया है.
- इस कार्यक्रम में 23 राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों के 102 शहरों को चुना गया है. इन शहरों का चुनाव केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 2011 और 2015 की अवधि में इन शहरों की वायु गुणवत्ता से सम्बंधित आँकड़ों के आधार पर किया गया है. इन शहरों में वायु गुणवत्ता के राष्ट्रीय मानकों के अनुसार वायु की गुणवत्ता लगातार अच्छी नहीं रही है. इनमें से कुछ शहर ये हैं – दिल्ली, वाराणसी, भोपाल, कोलकाता, नोएडा, मुजफ्फरपुर और मुंबई.
- इस कार्यक्रम में केंद्र की यह भी योजना है कि वह पूरे भारत में वायु गुणवत्ता की निगरानी के नेटवर्क को सुदृढ़ करे. वर्तमान में हमारे पास 101 रियल-टाइम वायु गुणवत्ता मॉनिटर हैं. परन्तु निगरानी की व्यस्था को सुदृढ़ करने के लिए कम से कम 4,000 मॉनिटरों की आवश्यकता होगी.
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में एक त्रि-स्तरीय प्रणाली भी प्रस्तावित है. इस प्रणाली के अंतर्गत रियल-टाइम भौतिक आँकड़ों के संकलन, उनके भंडारण और सभी 102 शहरों में एक्शन ट्रिगर प्रणाली की स्थापना अपेक्षित होगी. इसके अतिरिक्त व्यापक रूप से पौधे लगाये जाएँगे, स्वच्छ तकनीकों पर शोध होगा, बड़े-बड़े राजमार्गों की लैंडस्केपिंग की जायेगी और कठोर औद्योगिक मानदंड लागू किये जाएँगे.
- इस कार्यक्रम के तहत राज्य-स्तर पर भी कई कदम उठाये जाएँगे, जैसे – दुपहिये वाहन का विद्युतीकरण, बैटरी चार्ज करने की व्यवस्था को सुदृढ़ करना, BS-VI मापदंडों को कठोरता से लागू करना, सार्वजनिक यातायात तन्त्र को मजबूत करना तथा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों का तीसरे पक्ष से अंकेक्षण कराना आदि.
- इस राष्ट्रीय योजना में पर्यावरण मंत्री की अध्यक्षता में एक सर्वोच्च समिति, अवर सचिव (पर्यावरण) की अध्यक्षता में एक संचालन समिति और संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति की स्थापना का भी प्रस्ताव है. इसी प्रकार राज्यों के स्तर पर भी परियोजना निगरानी के लिए समितियाँ होंगी जिनमें वैज्ञानिक और प्रशिक्षित कर्मचारी होंगे.
कार्यक्रम के लाभ
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम से यह लाभ हुआ है कि वायु प्रदूषण को घटाने के लिए लक्ष्य निर्धारित हो गये हैं जिसके लिए बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी. इन लक्ष्यों से यह लाभ होगा कि उन क्षेत्रों का पता चल जाएगा जहाँ प्रदूषण की समस्या गंभीर है और यह भी पता चलेगा कि वहाँ प्रदूषण घटाने का लक्ष्य पाने के लिए कौन-कौन से कारगर कदम उठाये जाने चाहिएँ.
Topic : ECO Niwas Samhita 2018
संदर्भ
हाल ही में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency -BEE) और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (Central Public Works Department – CPWD) ने भवनों में ऊर्जा सक्षमता को बढ़ावा देने के लिए समझौता पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.
विदित हो कि दिसम्बर 14, 2018 को आवासीय भवनों के लिए ऊर्जा संरक्षण निर्माण संहिता, 2018 (Energy Conservation Building Code) का अनावरण किया गया था जिसका उद्देश्य आवासीय क्षेत्र में ऊर्जा की बचत को बढ़ावा देना है.
इस संहिता के प्रावधानों को लागू करने के लिए ऊर्जा सक्षमता ब्यूरो (BEE) को प्राधिकृत किया गया है.
इस संहिता में इस बात पर बल दिया गया है कि अपार्टमेंट, टाउनशिप अथवा घर इस प्रकार बनाए जाएँ कि उनके निवासियों को ऊर्जा की बचत का लाभ प्राप्त हो. इस संहिता का अनावरण ऊर्जा मंत्रालय ने किया है.
यह संहिता क्या है?
- यह संहिता वास्तुविदों, विशेषज्ञों, निर्माण-सामग्री के आपूर्तिकर्ताओं एवं डिवेलपरों आदि सभी हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के पश्चात् तैयार हुई है.
- इसमें जो मानदंड सूचीबद्ध किये गये हैं, वे जलवायु एवं ऊर्जा से सम्बंधित आँकड़ों से सम्बंधित कई मानदंडों पर आधारित हैं.
- इस संहिता से उन वास्तुविदों और भवन-निर्माताओं को सहायता मिलेगी जो नए आवासीय संकुलों के रूपांकन एवं निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं.
- आशा की जाती है कि इस संहिता को लागू करने से 2030 तक प्रतिवर्ष 125 बिलियन बिजली इकाई के समतुल्य ऊर्जा की बचत होगी जो 100 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन के बराबर है.
ऊर्जा सक्षमता ब्यूरो (BEE)
यह एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के प्रावधानों के अंतर्गत मार्च 2002 में ऊर्जा मंत्रालय द्वारा की गई थी. इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- ऊर्जा सक्षमता एवं संरक्षण से सम्बंधित नीति एवं कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करना.
- ऊर्जा की माँग को आदर्श स्थिति में लाकर पूरे देश में ऊर्जा सुविधा की सघनता (energy intensity) को घटाना.
- वैश्विक तापवृद्धि एवं जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाना.
यहाँ पर ध्यान रहे कि UNFCCC को समर्पित अभिलेख में भारत ने यह वचन दिया है कि वह 2030 तक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में 33-35% की कमी लाएगा.
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